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हिन्दी कविता ' उलझा इन्सान '

कविता "उलझा इंसान"

हिन्दी कविता ' उलझा इन्सान '
Image by Miho

जितना खेलोगे दिल से,
उतना उलझोगे हर पल से।
खामोशी में क्या छुपा है राज,
ये वक्त भी अनजान है।
जो बीत गया उसे पीछे छोड़ो,
ये जीवन की पाठशाला है।
गिरोगे तभी तो संभालोगे,
वहीं नई दिशा का मार्ग होगा।
गलती नादानियां करते रहेंगेँ,
जीवन का हिस्सा बने रहेगें।
डरना तो बुजदिलों का काम है,
दुनिया मे आए हैं तो जीना होगा। 
जहर का घूट पीते हुए,
हर काम करना ही होगा।
अंधियारे को मिटाना है,
सूरज की तरह चमकना है।
अभी तो तमाम उम्र बाकी है,
हर दिल में आस जगानी है।
किसी कंधे का सहारा बनो,
खुद सहारा न बन जाना।
आंख होकर भी अंधे बने रहे,
ये कोई अच्छी बात नही।
जीवन अमूल्य है जो कर्म का ज्ञाता है,
ये बात हमेशा याद रखना।
हर रोज एक नई पहेली होगी,
वही चुनौती का हिस्सा है।
अपनी खामियों का,
किस किस को दोष देते रहोगे।
जो कांटों पर चलना जान गया,
वो उलझनों में नही घिरेगा।
सोचने से क्या होता है,
जीने से पहले मरने से क्या होगा।
इंसान का जीवन मिलना,
कुदरत का वरदान है।
हर रंग में जीने का नया अंदाज ढूंढो,
सपने संवरते नजर आ जायेंगें। 
हर बार एक नई सुबह होगी,
हर दिन कुछ नया सीखोगे।
जग बदले या न बदले,
खुद को बदलना होता है।
सपनों का क्या वो आते जाते रहेंगें,
कुछ सिमटेंगें कुछ बिखरेंगें।
उससे ज्यादा क्या होगा,
चक्र तो चलता ही रहेगा।
हर दिन गिरना हर दिन उठना,
असली योद्धा की पहचान है।
प्रण करो नही सोचेंगें,
जिंदादिल बनके रहेंगे।
तुम अकेले एक नही हो,
विधाता सबका साथी है।
सबको सब कुछ नही मिलता,
इस हकीकत को जान लो।
चाहोगे तो तकदीर बदलेगी,
नही चाहोगे तो उलझे रहोगे।
एक बार मुस्कुराकर तो देखो,
इंद्रधनुष हमेशा करीब होगा। 
किसे के करने से कुछ नही होता,
ऊपर वाला जो चाहेगा वही होगा।
बस सोच शक्ति मजबूत रखो,
कोई बाल बाका नही कर सकेगा।
जीने की उम्र में जी कर तो देखो,
सब कुछ आसान नजर आयेगा।
असफल हुए तो क्या हुआ,
करना न कभी अफसोस।
तुम्हारे अपने जन्मदाता हैं,
जरा उनकी ओर तो देखो।
क्या मिला क्या नही मिला,
सब कुछ भूलकर तो देखो।
एक नई सुबह की ओर चल,
राह में फूल बिखर जायेंगे।
क्या दर्द है जो छुपा रखा है,
जिसके लिए दवा खानी पड़ती है।
अपने दर्द को भूलकर,
जरा दूसरों के दर्द को भी देखो।
दवा खाना छोड़ दोगे,
खुद ब खुद दर्द कम हो जायेगा।
मोह माया का संसार है,
जितना मिले उतना कम है।
हर बडा छोटे को दबाता है,
किस किस के डर से भागोगे।
हमको जितना मिले,
उतने में ही खुश रहना सीखो।
आगे क्या होगा ये मत सोचो,
जो होगा सब मंजूरे खुदा होगा।
आज अभी अकेले हो,
इस बात से क्यों घबराना।
अपनी नादान हरकतों से,
तेरे अपनो को क्यों रुलाते हो।
मानसिक बीमारी का शिकार,
डॉक्टरों की दी उपाधि है।
चल उठ और आगे बढ़,
बुजदिली की चादर हटा दे।
रौशन कर इस जहान को,
हम सब तेरे साथ हैं।
कोई तो फिकर करता है,
इससे बडी क्या बात होगी।
रिश्ते बेमाने हैं तो मत देख उधर,
उनकी फिक्र करना छोड़ दे।
लौट के पंछी घर को आजा,
तेरे अपने राह देख रहे हैं।
दो चार बातें कर हर रोज ,
खुशियां ही खुशियां नजर आयेगी।
प्यार के दो कौर खाकर,
जीवन को अनमोल बनाले।





✍️ Vijay Tiwari
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