कविता- जीना है।
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जीना है हर हाल में
जैसी भी हो अपनी है
जिंदगी के सारे किस्से
कोई खुश हो या ना हो
किसी तरह तो कटेगी
बचपन साये में गुजरा
दर्द से पाला नही गिरा
यौवन मस्ती में गुजरा
मस्तराम बने रहे
देखा सुना हर पहर
सीखा समझा जाना
फिर बंधनों में बंध गए
उलझनों में घिर गए
रोटी की कीमत क्या है
अब बात समझ आई
रिश्ते नाते अपने बेगाने
सबका मोल समझ आया
पत्नी बच्चे खूनी रिश्ते
संभले संभल ना जाये
ख्वाहिशें फरमाइशों का
ताना बाना बुनते चले गए
हर आस पर खरा उतरूं
ऐसा संभव नही हुआ
इसी बात से फिर
कड़वाहट का उदय हुआ
नोक झोंक ताने बाजी
अब रोजमर्रा की बात हुई
भाई चारे अब बस नाम के
आपस में ही जब भेद हो
वो रिश्ते क्या परवान चढ़ेंगें
अब देखा देखी का खेल है
उसी पर सबकी नजर है
उसने क्या बनाया है
और तुमने क्या उखाड़ा है
यही कहानी का हिस्सा बना
कोई किसी को समझा न सके
सब खुद हो गए होशियार
अब अपनी अपनी मर्जी के
सब खुद मालिक बन बैठे
अच्छी शिक्षा अच्छा ज्ञान
बंद कमरों में कैद हुई
बेटा बेटी शिक्षित हुए
उनके अपने अधिकार सुनो
जितना करो उतना कम
आपा धापी में प्यार
अब मरकर रह गया
जनम लिया जन्म दिया
आखिर सब करना है
यही तो जीवन का हिस्सा है
बनेगा या ना बनेगा
फिर भी कर्म करना है
दुःख के साये
या सुख के साये
अपनी ही तो झोली है
इसीलिए हर हाल में
हम सबको जीना है।
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✍️ Vijay Tiwari
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