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हिन्दी कविता पथिक

 कविता पथिक



पथिक













पथिक हूँ मैं उस राह का

जिसकी कोई मंजिल नही।

उन्मुखत्त ख्यालों का आदी हूँ

पंख पखेरु साथ लिये।

सप्तरंगी सपनो की बहार लिये

सार्थक जीवन को ढूँढता फिरूँ मै।

पथिक हूँ मै उस राह का

जिसकी कोई मंजिल नही।

वसुंधरा के आँचल तले

हर साँस निर्भय बना रहा।

वत्स्यलता का सागर विशाल

झलकाता नही मुख पे निशान।

पथिक हूँ मैं उस राह का

जिसकी कोई मंजिल नही।

त्याग रहा हर बन्धनता को

मानव ज्योत जलाना है।

प्रखर हुई किरणें सभी

अँधियारे को मिटाना है।

पथिक हूँ मैं उस राह का

जिसकी कोई मंजिल नही।

पथिक हूं मैं उस राह का

जिसकी कोई मंजिल नही।


✍️ Vijay Tiwari


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