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कब तक शहादत होती रहेगी।

कब तक शहादत ?

कब तक शहादत देते रहेगें ? ये समझ नही आता।बीते दिन में नक्सली हमले में 22-24 जवान एक बार फिर से मारे गए और अधिक संख्या में जवान घायल हुए। हम सबको मिलकर मंथन करना होगा कि ऐसी वारदात ऐसे कैसे लोग अंजाम दे देते हैं और इनके पास आधुनिक हथियार कहां से आते हैं और इनकी इतनी हिम्मत कैसे बढ़ जाती है ये सोचने वाली बात है। कहीं न कहीं हम लोगों में से कोई न कोई उनका साथ दे रहा है और मुखबिरी भी कर रहा होगा जिससे वो सावधान हो जाते हैं उसके बाद बड़ी घटना को अंजाम देते हैं।

पता नही कितने घर उजड़ गए हमारे सैनिकों के और सूनापन छा गया। जिनको जिन्दगी में अभी बहुत कुछ करना बाकी था उनका ही किस्सा तमाम हो गया। अभी तो सारी उम्र पड़ी थी फिर ये वक्त क्यों नही थमा। कब तक शहादत होगी और कब तक आसुओं की धार बहेगी।

सैनिकों के बलिदानों की फ़िक्र नेताओं को नही है वो तो बस अपनी रोटियाँ सेकतें रहते हैं। हम हर दिन सालों साल से tv news में और अखबारों में पढ़ते रहते हैं और देखते हैं। आज कल तो social media ke माध्यम से भी तुरंत जानकारी दूर दूर तक मिल जाती है।

हमारे इन सैनिकों को आतंकवादी और नक्सलियों से बार बार सामना करना पड़ता है और देश की आंतरिक गड़बड़ियों को रोकने के लिए भी अराजक तत्वों से सामना करना पड़ता है। उनमें अनगिनत सैनिकों की मौत हो जाती है। आंकड़ा शहादत का बडा लंबा चौड़ा है। हमारे उन सैनिकों में वो सभी लोग आते हैं जो देश और जनता की सुरक्षा में तैनात हैं।

जिन परिवार में मौत होती है वहां मातम छा जाता है कोई पत्नी विधवा हो गई तो किसी मां बाप का बेटा खो जाता है और बच्चों के सिर से पिता का साथ छूट जाता है। अगर घर में कमाने वाला न हो और जिन बच्चों का जन्म हुआ हो उसने अपने पिता को न देखा हो और पिता ने अपने बच्चे को न देखा हो और अगर उसकी शहादत हो जाए तो इससे बड़ा दुःख और क्या हो सकता है। जिनकी नई नई शादी हुई हो और दुल्हन के हाथों की मेंहदी न छूटी हो और पति की शहादत की खबर मिल जाये तो उस मासूम दुल्हन पर क्या बितती होगी जरा कल्पना करके देखिए रूह कांप जायेगी। जो बच्चे अभी 2-5-10 साल के हों और घर की हालत ठीक न हो तो उनके लालन पालन करने में उनके परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वो दुःख क्या होता है ये हम समझ नही पाते। कहते हैं न कि जिस पर बितती है वही समझता है दूसरा उस पीड़ा को क्या समझेगा?

सत्ता के गलियारे में सरकारों की नीतियां सबसे बड़ी दोषी रहीं हैं उन्होंने ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए ठोस उपाय नही किए और घटना दुबारा न हो इस ओर ध्यान नही दिया। सालों से तिरंगे में लिपटे कफन लाये जाते हैं और उनको सलामी देकर उनका दाह संस्कार या दफन कर दिया जाता है। मौजूदा नरेंद्र मोदी की सरकार ने कुछ ठोस कदम उठाएं हैं फिर भी घटनाऐं होती रहती हैं भले संख्या कम हुई है फिर भी बड़े हादसे घटित हो रहे हैं। 

हम अपने देश के भीतरी गद्दारों की वजह से भी ऐसी घटना को देखते हैं और राजनीतिज्ञ बयानबाजी करके एक  दुसरे की टांग खींचते हैं उनको दुःख अफसोस सिर्फ नाम का होता है। दूसरी तरफ राजनिति का अपराधीकरण हो गया है और नेता पार्टियां सब बिक जाते हैं। उनको बस पैसे बनाने हैं फिर कोई चाहे जीये या मरे! देश का विकास हो या न हो कुछ फर्क नही पड़ता। कितनी गिरी हरकतें करतें हैं ये अक्सर हम देखते सुनते हैं और सब जानते हैं फिर भी आंख बंद कर लेते हैं और उन्हीं के पीछे भागते हैं। सिंहासन पर हम ही उनको बिठाते हैं या दुबारा बिठाते हैं। 

अब सोचने का वक्त नही है कुछ ठोस कदम उठाने होंगें। हम जिनको अपना गौरव समझते हैं भारत का वो बेटा मरता है। गाँव शहर में बलिदानों का शोक मना कर भीड़ में कब तक खोते रहेंगे। शोकग्रस्त परिवार आंसुओं और मज़बूरी के सैलाब में बह जाता है। नेता दुःख और संवेदना प्रकट कर अपने आलिशान महल और कार्यालय में AC की ठंडी हवा खाकर सब भूल जाता है। सांत्वना के नाम पर मुवावजा दे देगा। सैनिक सिपाही मर जाता है फिर भी वो टैक्स दे जाता है। नेताओं की तन्खाह में टैक्स की छूट और संसद के गलियारे में खाने पर सब्सिडी मिलती रही क्योंकि वो देश क सेवादार और सैनिक जरुरत मंद नौकर थे उनकी जान की कोई कीमत नही!
सैनिक टैक्स देता है और नेता क्यों नही देता? जबकि देश की जनता से मिले टैक्स से दोनों को तन्खाह मिलती है। ये भेद नेताओं की ही देन है सारे फसाद की जड़ हम स्वयम हैं क्योंकि हम उनको चुनते हैं और वो भी जातिधर्म और भेद के आधार पर जीत जाते हैं। बस यही विनाश का दानव है और ये दानव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है।

हाल के दिनों में बहुत कुछ परिवर्तन किया गया फिर भी हमने अच्छी नीतियां बनाने में 70 साल गवां दिये। अच्छे लोग जब तक सत्ता में रहेंगें तब तक सब ठीक चलेगा लेकीन आगे आगे जो सत्ता परिवर्तन के बाद पार्टी नेता आयेंगे वो क्या क्या करेंगें वो वक्त बता देगा। अभी बंगाल को ही मिसाल के तौर पर समझ लें कि चुनाव में किस किस तरह का षड्यंत्र हो रहा है और जनता को गुमराह किया जा रहा है। पार्टी का झंडा पकड़ने वाले कितने लोग पहले और कितने बाद में मारे गये वो सब जानते हैं फिर भी जनता पागलपन दिखाती है। जनता बीते सालों के आधार पर जब ये भेद समझ न पाये कि क्या अच्छा हुआ और क्या बुरा हुआ है तो आप सोच लो हम किस मानसिकता में जी रहे हैं?

बस इसी तरह हम अपने सुरक्षा बलों के साथ खिलवाड़ करते आयें हैं। उनकी शहादत हुई मौन का दीप जला दिया और सब कुछ भूल जाते हैं तो कैसे उनके परिवार के दर्द को भी समझेंगें?
कब तक शहादत देंगें कुछ तो सोचो देशवासियों।
इस धारणा और मानसिकता को बदलना होगा और सबको बेनकाब करके हमारे वीरों का साथ देना होगा। राजनीतिज्ञ लोगों के मुखौटे को पहचानना होगा। अजर रहे अमर रहे यही कामना करें। देश का लाल है देश की मिट्टी में खेलता रहे, कब तक शहादत की गिनतियां गिनेंगें।




Note-- व्यक्तिगत आधार पर लिखा है इसमें कुछ गलती हो सकती है कुछ गलत नजर आये तो कृपया नजर अंदाज करें और अपने सुझाव दे सकते हैं ताकि उन कमियों को दूर किया जा सके।



✍️Vijay Tiwari
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