बिछड़ना कविता
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
रिश्तों में आग लगी
एक दीया बूझ गया।
कोशिशें मिन्नतें सब बेकार
राह से भटकते रहे।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
कैसी ये रुसवाई थी
दिलों में आग बनी रही।
कुछ बात समझ न आई
नादानियां कर बैठे।
सच्चाई से मुखर गए
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
हम खड़े थे जमीन पर
वो भटके रहे इधर उधर
जीवन की चंचल धारा में
मरघट की राख समा गई।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
जवानी की सुखित छड़ों में
प्यार में बनती रही दरार
संघर्षों के निष्ठुर भूमि पर
खेल रच गया कोई आज।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
मुहब्बत की खुशबू बिखरी रही
तन्हाई उस पर हावी थी।
आईना वही था
तस्वीरें वीरान हो गई।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
बेखबर किस्मत से
मौन का रिश्ता हो गया।
न रुकी वक्त की गर्दिशें
अरमानों में धूमिल हुई।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
मन से विश्वास जाता रहा
जीवन के रंगों में खो गया।
मेरी जरूरत आज भी हो
इबादतों में कल भी रहोगे।
चले थे जिनके साथ
वो बिछड़ गये आज।
✍️ Vijay Tiwari
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